मुदालियर आयोग को माध्यमिक शिक्षा के आधरभूत ढाँचे में सुधार लाने हेतु गठित किया गया था। भारत सरकार ने डाॅ. लक्ष्मणस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में ’माध्यमिक शिक्षा आयोग’ 23 सितम्बर, 1952 को स्थापना की थी। इसलिए इसे ’मुदालियर कमीशन’ कहा गया। मुदालियर आयोग के सदस्य में प्रिंसिपल जाॅन क्रिस्टी, डाॅ. केनेथ रस्ट विलियम्स,श्री मती हंसा मेहता, श्री जे. ए. तारापोरवाला, डा. के. एल. श्री माली, श्री. एम. टी. व्यास, श्री. के जी. सैयदैन, श्री. ए. एस. बसु सहायक सचिव थे |
मुदालियर आयोग के उद्देश्य :-
भारत में तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा की स्थिति का अध्ययन कर उसे संबंध में सुझाव देना।
आदर्श नागरिक तैयार करना।
मानवीय गुणों का विकास।
प्रजातंत्रीय नागरिकता का विकास करना।
बच्चों को व्यावसायिक ज्ञान होना चाहिए।
बालक के व्यक्तित्व के विकास की सभी संभावनाओं पर विचार करके उनके अनुसार कार्य करना तथा उसे एक अच्छे नागरिक बनने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
सुझाव :-
(1) पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धान्त – माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या को व्यापकता, वास्तविक, उपयोगिता और सहसंबंध पर विकसित करने का सुझाव दिया।
(2) स्त्री शिक्षा के सम्बद्ध में सुझाव – इस आयोग ने बालक-बालिकाओं की शिक्षा में असमानता न करने का सुझाव दिया है और बालिकाओं को बालकों की तरह शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।
(3) शिक्षा के उपयुक्त उद्देश्य – छात्रों का व्यक्तित्व विकास किया जायेगा, जिसमें उनका शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक, नैतिक और चारित्रिक विकास होना चाहिए।
(4) व्यवस्थित प्रशासनिक ढांचा – माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था में केंद्र सरकार की भागीदार होनी चाहिए। केंद्र की तरह राज्यों में भी ’राज्यीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ की स्थापना की जानी चाहिए।
(5) शिक्षकों की स्थिति में सुधार – शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव दिये जायेंगे।
माध्यमिक शिक्षा के दोष –
(1) बोझिल पाठ्यचर्या – माध्यमिक स्तर पर तीन भाषाएँ और आठ विषयों का अध्ययन लगता है आयोग बच्चों को एक साथ ही सब पङा देना चाहता है।
(2) अंग्रेजी के बारे में अस्पष्ट सुझाव – आयोग ने अंग्रेजी को अनिवार्य विषयों की सूची में रखा है तथा अंग्रेजी के अध्ययन के विषय में अस्पष्ट सुझाव दिये है।
(3) गैरसरकारी स्कूलों का अस्पष्ट सुझाव – इस आयेाग ने गैरसरकारी माध्यमिक सुझावों में सुधार करने के लिए जो सुझाव दिए है वो सुझाव आज की परिस्थिति में अनुकूलन नहीं है।
(4) अनेक प्रकार के पाठ्यक्रम – आयोग ने माध्यमिक स्तर पर अलग-अलग पाठ्यक्रम बनाया है, यह उपयुक्त नहीं है।
(5)माध्यमिक शिक्षा की अवधि 7 वर्ष की होनी चाहिए। इसका प्रारम्भ प्राथमिक शिक्षा (जूनियर बेसिक) की कक्षा 5 उत्तीर्ण के बाद होना चाहिए।
(6)माध्यमिक शिक्षा की यह अवधि दो भागों में विभाजित होनी चाहिए।
(1) 3 वर्ष तक जूनियर शिक्षा (2) 4 वर्ष तक उच्च माध्यमिक शिक्षा
(7) 11 वीं व 12 वीं कक्षा के इन्टरमीडिएट कक्षा को बदलकर 11 वीं कक्षा को हाईस्कूल तथा 12 वीं कक्षा को विश्वविद्यालय से जोङ दिया जाना चाहिए।
(8)नेत्रहीन व मूक बधिर व्यक्तियों की शिक्षा के लिए भी विद्यालयों का प्रबन्ध होना चाहिए।
(9)ग्रामीण विद्यालयों में कृषि-शिक्षा का विशेष प्रबन्ध होना चाहिए। और उद्यान कला, पशुपालन, कुटीर उद्योगों की शिक्षा का प्रबन्धन भी किया जाना चाहिए।
(10) स्नातक पाठ्यक्रम 3 वर्ष का कर दिया जाना चाहिए और माध्यमिक काॅलेजों से विश्विद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों के लिए एक वर्ष का पूर्व- विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम रखा जाना चाहिए।
(11)कक्षा 11 तक पास होने वाले छात्रों को विभिन्न व्यवसायिक व प्राविधिक संस्थानों में प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए।
(12)पर्याप्त संख्या में पाॅलीटेकिन्क और टेक्निकल विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए।
(13)सरकार द्वारा उद्योगों पर उद्योग-शिक्षा कर लगाकर इससे प्राप्त धन टेक्निकल शिक्षा विस्तार पर व्यय करना चाहिए।
योग्य छात्रों को छात्रवृत्तियों दी जानी चाहिए।
(14)माध्यमिक स्तर पर कुछ विशेष आवासीय स्कूल भी खोले जाए, जिनमें बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाए।
(15)बालक-बालिकाओं की शिक्षा में विशेष अन्तर की आवश्यकता न होने पर भी, बालिकाओं (लङकियों) के लिए ’गृहविज्ञान’ के अध्ययन की समुचित व्यवस्था आवश्यक रूप से होनी चाहिए।